'लोकतंत्र बचाने से पहले इसके मूल को समझना ज़रूरी', हलांकि कथित विषय की तीसरी कड़ी हम लिखने जा रहे हैं, फिर यह आरंभ काल कैसे फैला यह बात जानना आवश्यक होगा। पहले दो कडिय़ों में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को लेकर हम विषय की शुरूआत कर चुके हैं। किसी कारण वश तीसरा भाग लिखने में कुछ देरी हुई उसके लिए हमें खेद है। हम अपने पाठकों को बता दें कि लिखे जा रहे विषय के दूसरे पार्ट में हमने कार्ल माक्र्स के बाद जिस महत्वपूर्ण विद्वान शास्त्री ने डेमोक्रेसी और तानाशाही पर काम किया उनका नाम है बारिंगटन मूर। हालांकि उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक Social Origins Of Dictatorship and Democracy को काफी पेचीदा माना गया है और उसमें विषय संबंधित इतिहासिक मामलों की श्रृंखला प्रस्तुत की गई है।
बारिंगटन मूर (Barrington Moor) लिखते है कि उनकी पुस्तक उक्त विषय से जुड़े साहित्य को विस्तार देती है। जो बहुत से बिन्दुओं पर तर्क प्रस्तुत करती है। विशेषकर मूर ने अपनी बात को ज़ोर देर कहा कि पूंजीपति और मध्यवर्ग डेमोक्रेसी के प्रगटीकरण पर तर्कशील रहे हैं। विद्वतापूर्ण तकरार व गहराई से विस्तारपूर्ण वर्णन किए बिना इतना तो साफ है कि विषयगत आवश्यकता अनुसार उनकी अवधारणा में कुछ महत्वपूर्ण तरीके से बदलाव आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए पूंजिपति वर्ग एक रूप अर्थात युनीफाइड होने से दूर है। यह अपने में, जर्मन के थीसिनक्रप एजी से और अमरिका के बड़े बिजनस मैन और मानवप्रेमी जोहन डेविज़न रॉकफैलर सीनियर जैसे और दुकानदारों, शहरी व्यवसायिों जिन्हें कार्ल माक्र्स ने छोटे पूंजिपतियों की संज्ञा दी थी, को अपने में शामिल करना या जोड़े रखना चाहता है। फूकू यामा ने लिखा है कि मूर कहते हैं कि यह महत्वपूर्ण मीडियम क्लास सर्वदा डेमोक्रेसी की पक्ष धर नही रही। बल्कि बहुत से मामलों में इस मध्यम वर्ग के विभिन्न हिस्सों का झुकाव हालात के अनुसार बदलता रहा है। यद्यपि श्रमिक वर्ग को लोकतंत्र के कट्टर विरोधी कम्युनिस्ट या कृषि आनंदोलनों के विरूद्ध चुना जा सकता था लेकिन सच तो यह है कि बहुत से श्रमिक वर्ग के संगठन दृढ़ता से एक साथ, डेमोक्रेटिक वोटिंग के अधिकार और रूल ऑफ लॉ के लिए लामबंद हुए।
यह बात विशेषतौर पर $गौर करने की है कि उदार लोकतंत्र और उदार विधि शासन और इक्ट्ठा होकर राजनीतिक भागदारी दो अलग किये जा सकने वाले उपयोगी और महत्वपूर्ण घटक हैं । जिनका अलग-अलग सोशल ग्रुपस् द्वारा शुरूआती झुकाव राजनीेतिक उद्देश्यों के पूर्ति के लिए देखा गया। इसे जैसा कि बहुत से इतिहासकारों ने इंगित किया है कि फ्रैंच रिवोलियुशन के मध्यवर्गी लेखक समर्पित लोकतंत्रवादियों ने किसानों और मज़दूरों के तुरंत मतदाता होने के विस्तार की ओर इशारा किया। सरकार की शक्ति को सीमित करते हुए आदमी के अधिकारों को, पूंजिपतियों की संपती और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने वाली कानूनी गांरटी समझा गया किन्तु सामूहिक तौर पर फ्रैं च नागरिकों को आवश्यक रूप सशक्त नही बनाया गया। इसी प्रकार गत शताब्दी में गैलोरियस रिवोलुयशन में व्हीगस् पार्टी ने अंग्रेजी सम्राट से एक संविधानिक समझौता किया जिसके तहत बड़े सरमायेदार जो कि बहुत बड़े कर दाता भी कहलाते थे को उच्च अभिजात वर्ग में शामिल किया गया। आने वाली दो शताब्दियों में मध्यमवर्गी श्रमिकों में से वकीलों, डॉक्टरों, सीविल सरवेंटस्, अध्यापकों के अलावा अन्य व्यवसायिकों की बढ़ती तादाद को देखते हुए उनके पदों को शामिल करने के साथ-साथ उनको शिक्षा और उनकी संपत्ति के मलकीयत से उभारा गया। इन समूहों ने 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश लिबरल पार्टी की सहायता के आधार का निर्माण किया। वहीं लिबरल पार्टी का झुकाव डेमोक्रेसी से ज्यादा विधि-शासन की के अलावा ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देना था जिससे निजी संपत्ति और व्यक्तिगत अधिकारों के अलावा स्वतंत्र व्यापार मैरिटोक्रेटिक सिविल सर्विसिज़, सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने और आगे बढ़ाने में गति प्रदान की जा सके।
कलांतर में किसी प्रकार से डेमोक्रेटिक और लिबरल एजेंडा अभिमुख होना आरंभ हो गया, और लोकतंत्र मध्यम-वर्ग का उद्देश्य बन गया। कहना उचित होगा कि अतंत: विधि-शासन और डेमोक्रेसी सत्ता-ता$कत पर काबिज होने के वैकल्पिक माध्यम हैं।
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