लोकतंत्र बचाने से पहले इसके मूल को समझना ज़रूरी

लोकतंत्र बचाने से पहले इसके मूल को समझना ज़रूरी
जे.बी. शर्मा
हलांकि यह मज़मून काफी वसीअ है, फिर भी इसके बारे में समझना ज़रूरी होगा। आज आमतौर पर सुनाई  देता है कि लोकतंत्र की हत्या की  जा रही है या क हें कि हो रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है यह लोकतंत्र है क्या? और इसका उरीज़न कहां  हुआ और यह कैसे फैला? लोकतंत्र और चुनावी लोकतंत्र में क्या अंतर है? उसे भी समझना होगा। इस विषय का उल्लेख हम किश्तों में करेंगे। पहले भाग में हम इस महत्वपूर्ण विषय को ढंग से समझने के लिए कोशिश और अध्ययन  करते  हैं:
[Political Order And Decay ( From the Industrial Revolution to the Globalisation of  Democracy)] विश्व में डेमोक्रेसी फैली कैसे इस मूल प्रश्र से हम अपने विषय की ओर आगे बढ़ते हैं। अमेरिका के सुप्रसिद्ध राजनैतिक वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री फुकूयामा ने लोकतंत्र संबंधी कुछ मुख्य बिन्दु को कैसे विस्तार दिया यह बात समझने वाली है। पहला बिन्दु डेमोक्रेसी की तीसरी लहर, लोकतांत्रिक ये लहरें कैस उठी?  समाज के  विशेष समुहों में डेमोक्रेसी की जड़  कैसे मज़बूत होती गई? आर्थिक व लोकतांत्रिक बदलाव के बीच की कड़ी को लेकर सामाजिक लामबंदी। डेमोक्रेसी को  लेकर संघर्ष में राजनीतिक दल आधारभूत कारक।



  19 वीं 20 वीं सदी में औधोगिकरण की शुरूआत हो चुकी थी। ऐसे में पूर्वी एशिया में जापान और चीन सहित इस क्षेत्र की अन्य सोसाइटीज़  को चीरकालिक  सरकारों के उत्तराधिकारी के रूप देखा जाता रहा है। और इन्हें ठोस व मज़बूत स्टेटस् की पूर्वकल्पना करने वाला भी कहा जाए तो कदाचित उचित ही होगा। बड़ी बात यह है कि 1970 से और 2010 के बीच में पूरे विश्व में डेमोक्रोसी बहुत तेज़ी के  साथ प्रसारित हुई है। जिसका अंदाज़ा हम बीते 40 सालों में डेमोक्रेटिक देशों में तेज़ी हुई वृद्धि से लगा सकते हैं। फुकूयामा लिखते हैं कि शुरूआती दौर में लोकतंत्र विश्व के केवल 35 देशों में था जिनकी संख्या सन् 2010 तक बढ़ कर लगभग 120 तक पहुंच गई। कहना सही होगा कि वर्तमान में दुनियां भर के 60 प्रतिशत देश लोकतांत्रिक हैं।
 लेकिन इससे पूर्व का विश्व-समाज कृषि से जुड़ा सामाजिक असमानता का और असंगठित काश्तकारों का समाज था जिस पर तत्तकालिन एकाधिकार वाले अभिजात वर्ग का वर्चस्व चलता था। ध्यान रहे कि यहां बात विश्व-समाज की हो रही है विश्व इकादूक्का देश की नहीं। फुकूयामा अपनी उपरोक्त किताब में आगे लिखते हैं कि राज्य-समाज में समानता का संतुलन तीव्र आर्थिक उन्नित के साथ आरंभ हुआ। और कलांतर में चीन की तानाशाही व्यवस्था को अर्थपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि नया समाज लामबंद होकर राजनैतिक-शक्ति में अपनी हिस्सेदारी की मांग करने लगा। सैमयूल फिलिप्स हनटिंगटन जो कि अमरिका के राजनैतिक वैज्ञानिक और सलाहाकार और शिक्षाविद् थे, ने  इसे प्रचलन में प्रजातांत्रिक-करण की तीसरी लहर माना है। उनके अनुसार पहली किन्तु एक लंबी लहर सन् 1820 में आरंभ  हुई थी और निरंतर 19वीं सदी के अंत तक जारी रही। हनटिंगटन के अनुसार लोकतांत्रिक-कारण की दूसरी छोटी लहर दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद हुई। वो आगे बताते हैं  कि लोकतांत्रिक-कारण- परिवर्तन की तीसरी लहर स्पेन और पुर्तगाल में सन् 1970 में  जो आरंभ हुई वह ग्रीस और तुर्की के मिलेट्री रूल के साथ निरंतर बहती हुई ब्राजि़ल, अर्जनटाईना, पैरू, बौलविया और चाइल जैसे लैटिन अमरीका के देश में चलती हुई एशियाई देशों में बढ़ती गई। फिलीपिनस, साऊथ कोरिया, ताईवान और पूर्वी यूरोप में सोवियत संध  और कुछ उत्तराधिकारी राज्यों में साम्यवाद के ढहने से लोकतंत्र के साथ परिवर्तन की पराकष्ठा देखी जा सकती है। वहीं लैरी डायमण्ड का मानना है कि सन् 2000 में डेमोक्रेसी में कमी देखने को मिलती है।
  इजि़प्ट, लीबिया और सीरिया में अरब स्प्रिंग के रूप में  डेमोक्रेसी की चौथी लहर में पैदा होने वाली रूकावट  को संक्षिप्त रूप में समझ  लेतें हैं कि यह अरब स्प्रिंग क्या है? The Arab Spring was a series of ant-government protests, uprisings, and armed rebellions that spread across much of the Islamic world in the early 2010. It began in response to oppressive regimes and a low standard of living, starting with protests in Tunisia 2011.



 ऐसे में समझने वाली बात यह है कि डेमोक्रेसी की ये लहरें पैदा क्यों हुई? बड़ा सवाल यह है कि लोकतंत्र संबंधी ये लहर कुछ क्षेत्रों में आती हैं कुछ में नहीं ऐसा क्यों? और ऐसा भी क्यों होता है कि कुछ क्षेत्र में तो लोकतंत्र स्थापित हो जाता है और कुछ में इसे खदेड़ दिया जाता है? और साथ ही सवाल यह भी है कि क्या वजह रही कि विगत 400 से सालों में तो डेमोक्रेसी कहीं नहीं देखी गई किन्तु 20वीं सदी में आकर यह विश्व-परिदृश्य के रूप में सामने आ खड़ी होती है! और यह कैसे भिन्न रूपों में समाने आई ऐसे अनेक सवालों को लेकर एलैक्सिज़ डीटोक्विल, डेमोक्रेसी इन अमेरिका के परिचय में बताते हैं  कि मानव समानता को डेमोक्रेसी का आधार भूत विचार माना है। वे आगे यह भी कहते है कि आधुनिक डेमोक्रेसी विगत लगभग 800 सालों से अपनी जड़े मज़बूत करती आ रही है और इस विचार ने न रूकने वाली गति पकड़ी है।  एलैक्सिज़ आगे कहते हैं कि इसने उनमें एक धार्मिक आतंक पैदा किया है। डेमोक्रेसी से जुड़े इस लेख के पहले भाग में इतना ही इसके अगले भाग में डेमोक्रेसी के बारे और बाते करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि भारत क्या में लोकतंत्र बचा रहेगा? या कहें कि लोकतंत्र का भारत में भविष्य क्या होगा?