बढ़ती आबादी ऐलान-ए- बरबादी
जीव विरोधी समाज में क्यों खत्म हो रही आज़ादी
बढ़ती आबादी ऐलान-ए- बरबादी ।
आज नहीं तो कल ऐलान यह याद करोगे
की गई गलती पर पश्चाताप करोगे
तब मानोगे मुश्किल जो कंधों पर लादी
बढ़ती आबादी ऐलान-ए- बरबादी।
अभिमाद का रिवाज़ है, बिगड़ा जन-राज है
बेचारों-लाचारों के झुंड धक्के खाते
ऐंठ दिखाते कुटम्मस रोगी, गुंडे शराबी
बढ़ती आबादी ऐलान-ए- बरबादी।
मानवता की मिटती पहचान में,
रिश्तों की खींचतान में
कूटनी बन गई सबकी भाभी
बढ़ती आबाद ऐलान- ए- बरबादी।
उलझनों कि क्या बात करें हम, बड़ों- बड़ों का निकले है दम
ताले पे ताला जड़ के कर दी गुम चाबी
बढ़ती आबादी ऐलान-ए- बरबादी।