भारत-पाक वॉटर संधि
जे.बी. शर्मा
भारत-पाक वॉटर संधि
हलांकि भारत-पाक वॉटर ट्रिटी जैसे विषय पर संक्षिप्त रूप में लिखना किसी के लिए भी इतना आसान न होगा फिर भी एक प्रयास है। कहना उचित होगा कि [INDUS WATER TREATY Conflict between India and Pakistan] जैसे जटिल व असहज विषय पर कुछ लिखने के लिए हमें [col. C.R.Vashishth (Retd.)] के अध्ययन के साथ-साथ अन्य सूत्रों से भी कुछ जानकारी एकत्र करनी पड़ी। इण्डस वॉटर ट्रिटी भारत-पाक के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक संधि है जिसकी मध्यस्था वर्ड बैंक जिसका पुराना नाम इन्टर नेशनल बैंक ऑफ रिकंस्ट्रक्शन एण्ड डिवैलपमेंट था। उक्त संधि सन् 1960 में भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री स्र्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्तकालीन राष्ट्रपति महरहूम आयूब खान के बीच हुई थी।
ऐसे में अगर उक्त विषय कहें या संधि के सार को समझना चाहे तो जो बात सामने आती है वह यह कि भारत द्वारा पश्चिमी नदियों के पानी का इस्तमाल। क्योंकि भारत को पूर्वी नदियों पर पूरे नियंत्रण का अधिकार मिला हुआ है वहीं पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर। अब क्योंकि भारत को पाकस्तिान के नियंत्रण वाली तीन नदियों के पानी का इस्तमाल सींचाई के अलावा अन्य प्रकार के विकास के लिए किये जाने की छूट प्राप्त है और यही छूट पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बनी हुई है। बड़ी बात यह है कि भारत के पास ऊपरी तटवर्ती इलाका होने की वजह से भारत जब चाहे पाकिस्तान के नियंत्रण वाली सिंध, झेलम और चनेबा के पानी को रोक सकता है या कहें कि बाधित कर सकता है। जबकि पर्वी नदियों में आनी वाली बयास,सतलुज और रावी तो इनडस ट्रिटी के तहत भारत के नियंत्रण में पहली से ही हैं। फिर भी कहना सही होगा कि, [ INDUS WATER TREATY Conflict between India and Pakistan] कोई सहज मुद्दा नहीं है। पाकिस्तानी-क्षेत्र में तो कोई बांध नहीं है जिससे वह पानी को स्टोर कर सके। इसलिए नतीजतन छ: नदियों का जो पानी पाकिस्तान पहुंचता है उस में से लगभग 80 से 90 प्रतिशत पानी अरेबियन समुद्र में जा गिरता है। ब्रिटिश इण्डिया के समय से ही विश्व बैंक के तत्कालीन प्रेजि़डेन्ट यूजेन ब्लैक ने इनडस वॉटर ट्रिटी में मध्यस्थ के रूप में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। ऐसा भी माना गया है कि पाकिस्तान की गिनती विश्व के निर्जल देशों में होती है जहां बरसात का औसत 240 मि.मी. ही निकलता है। सिंध का पानी ही पाकिस्तान के लिए सिंचाई और ओधौगिक ज़रूत का एक मात्र ज़रिया है। यह भी ठीक है कि खेती ही इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी है।
संधि के प्रावधान में एक आयोग की स्थापना भी की गई थी जिसका मुख्य दायित्व है भविष्य पानी के आवंटन को लेकर अगर दो देशों के बीच किसी प्रकार का विवाद उभरता है तो उसे समाप्त किया जाए। भारत-पाक के बीच 1965, 1971 और 1999 के तीन युद्धों के बाद भी इस आयोग ने सरवाइव किया । इस्पैक्शन क े ज़रीए अंकोड़ों के अदान-प्रदान, समय-समय पर उभरने वाले वाद-विवाद का निपटारा अपने एक जारी तरीके अन्र्तगत यह आयोग करता रहा है।
उक्त ट्रिटी क ी स्टडी से साफ होता है कि इनडस बेसिन पर भारत द्वारा प्रपोसड और बनाए जाने वाले लगभग 9 प्रोजेक्टस से पाकिस्तान में खलबली है। और वहीं जब हम वुडरो विलसन् इन्टरनेशनल सेंन्टर फॉर स्कोलर्स के साऊथ ऐशिया के मामलों में विशेषज्ञ माइकल कोजेलमैन के वक्तव्य क ा यहां उल्लेख करते है तो पता चलता है कि पाकिस्तान पहुंचने वाले पानी का बहुत बड़ा हिस्सा, कपड़ा इण्डस्ट्री, गेंहू, शूगर के उत्पादन में ज़ाया चला जाता है। इस संदर्भ में और भी उझाने वाली समस्या हैं लेकिन आज बड़ा सवाल यह है कि पानी के बंटवारे का उलझाव किसी प्रकार समाप्त हो?
मुख्तसरन तौर पर अगर हम विशेषज्ञों के कथनों को समझें तो पता चलता है कि यह पानी के बंटवारे का बहुत ही पैचिदा मामला दो देशों यानि भारत-पाक के बीच बनी एक नाज़ुक सी शांति के लिए कैसा $खतरा है? जबकि विकास के कुछ नमुनों को जब परखा जाता है तो पता चलता है कि सन् 2025 तक इण्डस वॉटर ट्रिटी के समय की आबादी की तुलना में दोनों देशों की आबादी क्रमश: 3 और 6 गुना बढऩे वाली है। भारत की आबादी सन् 25 तक लगभग 3 गुना हो जायेगी। वहीं पाकिस्तान की आबादी सन् 25 तक 6 गुना बढऩे वाली है। और इससे भी बड़ी बात यह कि जलवायु में होने वाले निरंतर बदलाव के चलते जो $खतरा छिपा है जो साफ दिखाई नहीं देता वह यह कि जिसके चलते ग्लेशियर पिघल रह हैं वह और भी भयावह स्थिति की ओर संकेत कर रहे हैं! कश्मीर के पहाड़ो स्थित ग्लेशियर तो और भी बड़ा $खतरा बन सकते हैं। इन सब बातों के अतिरिक्त जो एक प्रत्यक्ष $खतरा भारत-पाक अमन के बीच दिखाई दे रहा है वह यह कि आज दोनों देशों के पास परमाणु शक्ति है। ज़रा सोचो कि इन हालत में अगर दोनों देशों के बीच जंग छिड़ जाती है तो परिणाम क्या होंगे?